Raksha bandhan 2024 रक्षाबंधन 2024 में 19 अगस्त सन 2024 को है यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है यह भाई बहन के स्नेह का त्यौहार है जिसे सनातन संस्कृति में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और यह बहुत पिछले समय से मनाया जाता है पौराणिक कथाओं को मानना है कि रक्षाबंधन का त्योहार सतयुग के समय से मनाया जा रहा है आज के दिन बहन अपने भाई के कलाई में धागा बांधती हैं जिसे हम राखी कहते हैं रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं और बहन अपने भाइयों के घर आती है
रक्षाबंधन सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाला महत्वपूर्ण त्यौहार है रक्षा का बंधन बहन अपने भाई के हाथ पर राखी बांधती है और भाई उन्हें उनकी रक्षा का विश्वास दिलाता है रक्षाबंधन में बहन अपने भाई के सिर पर कुछ कपड़ा या रुमाल डालकर उसकी आरती उतारती हैं उसके बाद उसके हाथ पर राखी बांधकर उसे मीठा खिलाती है इसके बाद भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं उपहार स्वरूप कोई गिफ्ट या फिर पैसे कुछ भी दिया जा सकता है और इस तरह रक्षाबंधन मनाया जाता है यह भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है आई अब हम जानेंगे रक्षाबंधन को कुछ पौराणिक कथाओं के माध्यम से की किस तरह हजारों वर्षों से रक्षाबंधन हमारी परंपराओं में शामिल है
Raksha bandhan 2024 रक्षाबंधन की कहानी आज हम इस लेख में रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है के संबंध में पढ़ेंगे। महाभारत काल की बात है वासुदेव जी के दो बहन थी पांडवो की मां कुंती और श्रुतशुभा। रानी श्रुतशुभ की बहुत समय के बाद एक पुत्र हुआ। जो की जन्म से ही असामान्य था। कई वैद्दो को दिखाने के बाद भी वो ठीक नही हो रहा था। फिर एक दिन उनके घर एक ब्राह्मण आते है और वो शिशुपाल को देखकर बोले की तुम्हारा पुत्र किसी महान व्यक्ति के स्पर्श से ठीक हो सकता है परंतु जो व्यक्ति इसे ठीक करेगा वही व्यक्ति इसकी मृत्यु का कारण बनेगा। यह सुनकर रानी घबरा गई की कोन होगा जो मेरे पुत्र की मृत्यु का कारण बनेगा मेरा पुत्र तो ठीक हो जायेगा पर अपनी मृत्यु के करीब हो जायेगा। और रही अपने पुत्र को ठीक करने का प्रयास करती रही।
Raksha bandhan 2024 एक दिन भगवान उनकी बुआ श्रुतशुभा के घर आए और उनके पुत्र को गोद में लिए जिससे उनका पुत्र शिशुपाल एक दम स्वस्थ हो गया।शिशुपाल के ठीक होते ही देवी को खुशी के साथ दर भी था। की कृष्ण ही मेरे पुत्र के विनाश का कारण बनेगा और वह श्री कृष्ण से हाथ जोड़कर विनती करने लगी और श्री कृष्ण को उन्होंने ब्राह्मण की कहानी बात बताई और विनती करते हुए श्री कृष्ण से कहने लगी कि आप मुझे शिशुपाल की हर गलती माफ करने का वचन दे। तब श्री कृष्ण ने अपनी बुआ देवी श्रुतशुभा को वचन दिया कि मैं शिशुपाल की 100 गलतियां माफ करूंगा लेकिन सो गलतियों के बाद उसकी कोई भी गलती को माफ नहीं करूंगा इसके बाद बहुत समय बीत गया शिशुपाल बड़ा होगा और एक क्रूर राजा बना वह अपनी प्रजा के साथ दो व्यवहार करता और भगवान श्री कृष्ण को भी नीचा दिखाता रहता है ना चाहते हुए भी भगवान श्री कृष्णा उसकी सभी गलतियां माफ कर देते थे। फिर एक दिन पांडव कौरवों के भरी सभा में जहां पर श्री कृष्णा भी मौजूद थे और शिशुपाल भी वहां जाकर भगवान श्री कृष्ण को अब शब्द बोलने लगा जिससे भगवान श्री कृष्णा खड़े हो गए। और उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मैं तुम्हारी 100 गलती ही माफ करूंगा उससे ज्यादा गलती होने पर मैं तुम्हारा वध कर दूंगा जिससे शिशुपाल अपने अहंकार में आकर उन्हें और बुरा भला कहने लगा। फिर उसकी 100 गलतियां पूरी होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। पर सुदर्शन चक्र छोड़ने के समय भगवान श्री कृष्ण की उंगली पर चोट लग गई सब उनकी उंगली पर लगी चोट से बातें खून को रोकने के लिए यहां वहां भाग कर कोई कपड़ा लाने की व्यवस्था में लग गए पर वहीं पर खड़ी वहीं पर खड़ी द्रौपदी जिन्हें भगवान श्री कृष्णा अपनी बहन मानते थे उन्होंने अपने आंचल का एक कपड़ा फाड़ कर भगवान श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया जिससे उनका खून बहना बंद हो गया और उनकी रक्षा हुई तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि जब भी तुम्हें मेरी जरूरत पड़ेगी और तुम मुझे अपने मन से याद करोगी तो मैं आकर तुम्हारी रक्षा करूंगा।
आज के ही दिन क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन
Raksha bandhan 2024 राजा बलि के यज्ञ करने पर जब भगवान श्री हरि बावन अवतार रखकर राजा बलि से 3 गज जमीन की मांग की थी उसके बाद दानवीर राजा करण ने उन्हें तीन गज जमीन लेने को कहा उन्होंने आकाश धरती और पाताल तीनों ले लिए पर राजा बलि के वचन वध होने से खुश होकर भगवान श्री विष्णु ने राजा बलि को पाताल का राजा बना दिया और एक वरदान मांगने को कहा जिस राजा बलि ने उनसे कहा कि आप मेरे राज्य में द्वारपाल बनकर रहेंगे और भगवान श्री विष्णु ने उन्हें यह आशीर्वाद दे दिया इसके बाद भगवान श्री विष्णु पाताल लोक के द्वारपाल बन गए और बैकुंठ लोक नहीं जा पाए कुछ दिन के बाद माता लक्ष्मी ने उनका पता लगाया और वह भी पटल पहुंच गए और भगवान से कहानी सुनाने के बाद उन्होंने एक ब्राह्मण नारी का रूप रखा और राजा बलि के पास गई और उनके कलाई पर धागा बांधा जिस पर राजा बलि उन्हें अपनी बहन मानकर उन्हें कुछ भी मांगने के लिए कहते हैं तब माता लक्ष्मी श्री विष्णु जी को मांग लेती हैं कि जो आपके द्वारपाल बनकर खड़े हैं वह मेरे पति हैं और उन्हें उनके लोग जाने की अनुमति दें जिससे दानवीर राजा बलि भगवान श्री विष्णु को वरदान वचन मुक्त कर देते हैं और श्री हरि विष्णु अपने लोग बैकुंठ धाम चले जाते हैं इस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी जिस वजह से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा|